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Showing posts from June, 2011

वास्तु के अनुरूप सजाएँ कलाकृतियाँ

कलाकृतियाँ सिर्फ कला दीर्घाओं की ही शोभा नहीं बढ़ातीं बल्कि घर को इनसे एक अलग पहचान मिलती है। लोग इन्हें वास्तु के हिसाब से भी सजाते हैं। पेंटिंग आपके घर के इंटीरियर में चार चाँद तो लगाती ही है, लेकिन अगर आप सही पेंटिंग का चयन करें तो यह घर में खुशी और समृद्धि भी लाती है। वास्तुशास्त्री आनंद भारद्वाज मानते हैं कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अगर पेंटिंग के चयन में सावधानी बरती जाए तो यह काफी लाभदायक सिद्ध होती है। कैसा हो कलर कोड : पेंटिंग में रंगों का एक अलग स्थान होता है। हरियाली से युक्त, सूर्य की चमकती रोशनी और साफ नीले आसमान वाली पेंटिंग लिविंग रूम के लिए अच्छी मानी जाती है। ऐसी कलात्मक चीजें दक्षिण-पूर्व दिशाओं के लिए बेहतर हैं। गौर करने वाली बात है कि पेंटिंग ऐसी हो, जो ऊर्जा प्रदायिनी तथा प्रसन्नता देने वाली हो। नीले रंग की पेंटिंग उत्तर दिशा की दीवार पर बेहतर मानी जाती है। हरे या उससे मिलते-जुलते रंग पूर्व दिशा की दीवार पर लगाने से घर में खुशहाली आती है। लाल या संतरी रंग दक्षिण दिशा में हो तो बेहतर रहता है। बच्चों के कमरे में पेंटिंग लगाते समय

शत्रु नाशक प्रमाणिक प्रयोग####शत्रु नाशक प्रमाणिक प्रयोग

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शत्रु नाशक प्रमाणिक प्रयोग शत्रु-बाधा निवारक ‘दारूण-सप्तक’ जब हिरण्यकश्यप को भगवान् नृसिंह ने अपनी गोद में रखकर अपने खर-तर नखों से उसके उदर को सर्वथा विदीर्ण कर चीर दिया और प्रह्लाद का दुःख दूर हो गया । तदनन्तर श्री भगवान् नृसिंह का वह क्रोध शान्त न हुआ, तब भगवान् विष्णु के आग्रह पर भगवान् रुद्र ने श्री शरभेश्वर (पक्षिराज, पक्षीन्द्र, पंखेश्वर) का रुप धारण कर, अपनी लौह के समान कठिन त्रोटी (चोंच) से, नृसिंह देव के ब्रह्म-रन्ध्र को विदीर्ण कर दिया, जिससे वे पुनः शान्त हो गए । संक्षिप्त अनुष्ठान विधि- स्वस्तिवाचन करके गुरु एवं गणपति पूजन करें। संकल्प करके श्री भैरव की पूजा करें- दक्षिण दिशा में मुख रखें। काले कम्बल का आसन प्रयुक्त करें। दो दीप रखें-एक घृत का देवता के दाँये और दूसरा सरसों के तेल का अथवा करंज का देवता के बाँये रखें। आकाश भैरव शरभ का चित्र मिल जाए तो सर्वोत्तम है, अन्यथा एक रक्तवर्ण वस्त्र पर गेहूँ की ढेरी लगाएँ, उस पर जल से पूर्ण ताम्र कलश रखें। उसपर श्रीफल रखकर शरभ भैरव का आवाहन, ध्यान एवं षोडशोपचार पूजन करे। नैवेद्य लगाएं और जप पाठ शुरु करें। इस

श्रीसुदर्शन-चक्र-विद्या असाध्य रोग – व्याधि निर्मूलन प्रयोग

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श्रीसुदर्शन-चक्र-विद्या 3. असाध्य रोग – व्याधि निर्मूलन प्रयोग ‘श्रीसुदर्शन-चक्र-माला-मन्त्र’ द्वारा छोटी-मोटी बीमारियाँ अल्प काल में ठीक हो जाती है। अभिचार-प्रयोग भी नष्ट हो जाते है, किन्तु यदि दीर्घ-कालीन असाध्य बीमारियाँ हो, तो गन्हें दूर करने के लिए ‘श्रीसुदर्शन-चक्र’ का प्रयोग करना चाहिए- पहले सिद्ध ‘श्रीसुदर्शन-चक्र’ का विधिवत् पूजन करे। फिर भगवान् श्रीकृष्ण, भगवान् विष्णु व भगवान् दत्तात्रेय की मन्त्र-सिद्धि हेतु प्रार्थना करे। तब ‘चक्र’ को दाहिने हाथ में धारण करे या ‘चक्र’ को दाहिने हाथ में लेकर या ‘चक्र’ के ऊपर अपनी दाई हथेली रखकर निम्न-लिखित ‘रोग-मुक्ति-मन्त्र’ का नित्य निश्चित संख्या में जप करे। कुल जप १ लाख करे। हवनादि भी दशांश के प्रमाण में करे, तो उत्तम होगा। रोग-मुक्ति-मन्त्रः “ॐ ऐं ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रुं फट् स्वाहा महा-रुद्राय नमः।” उपर्युक्त विधि से उक्त मन्त्र का जप करने से प्रतिष्ठित ‘श्रीसुदर्शन-चक्र’ में, रोग के निर्मूलन की शख्ति की वृद्धि होती है। इसके अनुभव साधक को जप-काल में भी हो सकते हैं। कुछ भी अनुभव हो, एक लाख जप करना ही है। रो

ऋण-मोचन महा-गणपति-स्तोत्र

ऋण-मोचन महा-गणपति-स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्रीऋण-मोचन महा-गणपति-स्तोत्र-मन्त्रस्य भगवान् शुक्राचार्य ऋषिः, ऋण-मोचन-गणपतिः देवता, मम-ऋण-मोचनार्थं जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- भगवान् शुक्राचार्य ऋषये नमः शिरसि, ऋण-मोचन-गणपति देवतायै नमः हृदि, मम-ऋण-मोचनार्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ। ।।मूल-स्तोत्र।। ॐ स्मरामि देव-देवेश ! वक्र-तुणडं महा-बलम्। षडक्षरं कृपा-सिन्धु, नमामि ऋण-मुक्तये।।१ महा-गणपतिं देवं, महा-सत्त्वं महा-बलम्। महा-विघ्न-हरं सौम्यं, नमामि ऋण-मुक्तये।।२ एकाक्षरं एक-दन्तं, एक-ब्रह्म सनातनम्। एकमेवाद्वितीयं च, नमामि ऋण-मुक्तये।।३ शुक्लाम्बरं शुक्ल-वर्णं, शुक्ल-गन्धानुलेपनम्। सर्व-शुक्ल-मयं देवं, नमामि ऋण-मुक्तये।।४ रक्ताम्बरं रक्त-वर्णं, रक्त-गन्धानुलेपनम्। रक्त-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।५ कृष्णाम्बरं कृष्ण-वर्णं, कृष्ण-गन्धानुलेपनम्। कृष्ण-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।६ पीताम्बरं पीत-वर्णं, पीत-गन्धानुलेपनम्। पीत-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।७ नीलाम्बरं नील-वर्णं, नील-गन्धानुलेपनम्। नील-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।८ धूम्राम्बरं

ऋण-हरण श्री गणेश-मन्त्र प्रयोग

ऋण-हरण श्री गणेश-मन्त्र प्रयोग यह धन-दायी प्रयोग है। यदि प्रयोग नियमित करना हो तो साधक अपने द्वारा निर्धारित वस्त्र में कर सकता है किन्तु, यदि प्रयोग पर्व विशेष मात्र में करना हो, तो पीले रंग के आसन पर पीले वस्त्र धारण कर पीले रंग की माला या पीले सूत में बनी स्फटिक की माला से करे। भगवान् गणेश की पूजा में ‘दूर्वा-अंकुर’ चढ़ाए। यदि हवन करना हो, तो ‘लाक्षा’ एवं ‘दूर्वा’ से हवन करे। विनियोग, न्यास, ध्यान कर आवाहन और पूजन करे। ‘पूजन’ के पश्चात् ‘कवच’ - पाठ कर ‘ स्तोत्र’ का पाठ करे। विनियोगः- ॐ अस्य श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-मन्त्रस्य सदा-शिव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीऋण-हर्ता गणपति देवता, ग्लौं बीजं, गं शक्तिः, गों कीलकं, मम सकल-ऋण-नाशार्थे जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- सदा-शिव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्रीऋण-हर्ता गणपति देवतायै नमः हृदि, ग्लौं बीजाय नमः गुह्ये, गं शक्तये नमः पादयो, गों कीलकाय नमः नाभौ, मम सकल-ऋण-नाशार्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ। कर-न्यासः- ॐ गणेश अंगुष्ठाभ्यां नमः, ऋण छिन्धि तर्जनीभ्यां नमः, वरेण्यं मध्यमाभ्यां नमः, हुं अनामिकाभ

सभा मोहन

सभा मोहन “गंगा किनार की पीली-पीली माटी। चन्दन के रुप में बिके हाटी-हाटी।। तुझे गंगा की कसम, तुझे कामाक्षा की दोहाई। मान ले सत-गुरु की बात, दिखा दे करामात। खींच जादू का कमान, चला दे मोहन बान। मोहे जन-जन के प्राण, तुझे गंगा की आन। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं टं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा।। ” विधिः- जिस दिन सभा को मोहित करना हो, उस दिन उषा-काल में नित्य कर्मों से निवृत्त होकर ‘गंगोट’ (गंगा की मिट्टी) का चन्दन गंगाजल में घिस ले और उसे १०८ बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर श्री कामाक्षा देवी का ध्यान कर उस चन्दन को ललाट (मस्तक) में लगा कर सभा में जाए, तो सभा के सभी लोग जप-कर्त्ता की बातों पर मुग्ध हो जाएँग

“विधिः- चन्द्र-ग्रहण या सूर्य-ग्रहण के समय किसी बारहों मास बहने वाली नदी के किनारे, कमर तक जल में पूर्व की ओर मुख करके खड़ा हो जाए। जब तक ग्रहण लगा रहे, श्री कामाक्षा देवी का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का पाठ करता रहे। ग्रहण मोक्ष होने पर सात डुबकियाँ लगाकर स्नान करे। आठवीं डुबकी लगाकर नदी के जल के भीतर की मिट्टी बाहर निकाले। उस मिट्टी को अपने पास सुरक्षित रखे। जब किसी शत्रु को सम्मोहित करना हो, तब स्नानादि करके उक्त मन्त्र को १०८ बार पढ़कर उसी मिट्टी का चन्दन ललाट पर लगाए और शत्रु के पास जाए। शत्रु इस प्रकार सम्मोहित हो जायेगा कि शत्रुता छोड़कर उसी दिन से उसका सच्चा मित्र बन जाएगा।चन्द्र-शत्रु राहू पर, विष्णु का चले चक्र। भागे भयभीत शत्रु, देखे जब चन्द्र वक्र। दोहाई कामाक्षा देवी की, फूँक-फूँक मोहन-मन्त्र। मोह-मोह-शत्रु मोह, सत्य तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र।। तुझे शंकर की आन, सत-गुरु का कहना मान। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं टं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा।।”

विधिः- चन्द्र-ग्रहण या सूर्य-ग्रहण के समय किसी बारहों मास बहने वाली नदी के किनारे, कमर तक जल में पूर्व की ओर मुख करके खड़ा हो जाए। जब तक ग्रहण लगा रहे, श्री कामाक्षा देवी का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का पाठ करता रहे। ग्रहण मोक्ष होने पर सात डुबकियाँ लगाकर स्नान करे। आठवीं डुबकी लगाकर नदी के जल के भीतर की मिट्टी बाहर निकाले। उस मिट्टी को अपने पास सुरक्षित रखे। जब किसी शत्रु को सम्मोहित करना हो, तब स्नानादि करके उक्त मन्त्र को १०८ बार पढ़कर उसी मिट्टी का चन्दन ललाट पर लगाए और शत्रु के पास जाए। शत्रु इस प्रकार सम्मोहित हो जायेगा कि शत्रुता छोड़कर उसी दिन से उसका सच्चा मित्र बन जाएगा।

पीलिया रोग नाशक शाबर मन्त्र

ॐ नमो वीर  बैताल । पीलिया को मिटावे, काटे झारे रहै न नेंक।  रहै कहूं तो डारुं छेद-छेद काटे । आन गुरु गोरख-नाथ।  हन हन, हन हन, पच पच, फट् स्वाहा।   विधिः- उक्त मन्त्र को ‘सूर्य-ग्रहण’ के समय १०८ बार जप कर सिद्ध करें । अग्नि जलाकर 108 आहुतियाँ देशी घी से दें  इस तरह से मन्त्र सिद्ध हो जाएगा  और रोग को नष्ट करने में समर्थ होगा ! फिर शुक्र या शनिवार को काँसे की कटोरी में एक छटाँक तिल का तेल भरकर, उस कटोरी को रोगी के सिर पर रखें और कुएँ की ‘दूब’ से तेल को मन्त्र पढ़ते हुए तब तक चलाते रहें, जब तक तेल पीला न पड़ जाए।  ऐसा २ या ३ बार करने से पीलिया रोग सदा के लिए चला जाता है। रोगी जब ठीक हो जाए तो उसे चार लड्डू किसी पेड़ के निचे रखने के लिए कहें !

नजर उतारने के उपाय

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नजर उतारने के उपाय नजर उतारने के उपाय १॰ बच्चे ने दूध पीना या खाना छोड़ दिया हो, तो रोटी या दूध को बच्चे पर से ‘आठ’ बार उतार के कुत्ते या गाय को खिला दें। २॰ नमक, राई के दाने, पीली सरसों, मिर्च, पुरानी झाडू का एक टुकड़ा लेकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर से ‘आठ’ बार उतार कर अग्नि में जला दें। ‘नजर’ लगी होगी, तो मिर्चों की धांस नहीँ आयेगी। ३॰ जिस व्यक्ति पर शंका हो, उसे बुलाकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर उससे हाथ फिरवाने से लाभ होता है। ४॰ पश्चिमी देशों में नजर लगने की आशंका के चलते ‘टच वुड’ कहकर लकड़ी के फर्नीचर को छू लेता है। ऐसी मान्यता है कि उसे नजर नहीं लगेगी। ५॰ गिरजाघर से पवित्र-जल लाकर पिलाने का भी चलन है। ६॰ इस्लाम धर्म के अनुसार ‘नजर’ वाले पर से ‘अण्डा’ या ‘जानवर की कलेजी’ उतार के ‘बीच चौराहे’ पर रख दें। दरगाह या कब्र से फूल और अगर-बत्ती की राख लाकर ‘नजर’ वाले के सिरहाने रख दें या खिला दें। ७॰ एक लोटे में पानी लेकर उसमें नमक, खड़ी लाल मिर्च डालकर आठ बार उतारे। फिर थाली में दो आकृतियाँ- एक काजल से, दूसरी कुमकुम से बनाए। लोटे का पानी थाली में डाल दें। एक लम्बी काली या लाल रङ्ग

भैरव वशीकरण मन्त्र

भैरव वशीकरण मन्त्र १॰ “ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक-नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।” विधिः- सर्व-प्रथम किसी रविवार को गुग्गुल, धूप, दीपक सहित उपर्युक्त मन्त्र का पन्द्रह हजार जप कर उसे सिद्ध करे। फिर आवश्यकतानुसार इस मन्त्र का १०८ बार जप कर एक लौंग को अभिमन्त्रित लौंग को, जिसे वशीभूत करना हो, उसे खिलाए। २॰ “ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर। गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश। जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे। काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।” विधिः- २१,००० जप। आवश्यकता पड़ने पर २१ बार गुड़ को अभिमन्त्रित कर साध्य को खिलाए। ३॰ “ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा।” विधिः- उक्त मन्त्र को सात बार पढ़कर पीपल के पत्ते को अभिमन्त्रित करे। फिर मन्त्र को उस पत्ते पर लिखकर, जिसका वशीकरण करना हो, उसके घर में फेंक देवे। या घर के पिछवाड़े गाड़ दे। यही क्रिया ‘छितवन’ या ‘फुरहठ’ के पत्ते द्वारा भी हो सकती है।

अद्भुत शक्तिशाली श्री महाबली भैरव शाबर मन्त्र

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श्री भैरव मन्त्र “ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश, काना मदरा, भगवाँ भेस। मार-मार काली-पुत्र। बारह कोस की मार, भूताँ हात कलेजी खूँहा गेडिया। जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ। बारह कोस की रिद्धि ल्यावो। चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो। सूती होय, तो जगाय ल्यावो। बैठा होय, तो उठाय ल्यावो। अनन्त केसर की भारी ल्यावो। गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो। गेल्याँ की रस्तान मोह, कुवे की पणिहारी मोह, बैठा बाणिया मोह, घर बैठी बणियानी मोह, राजा की रजवाड़ मोह, महिला बैठी रानी मोह। डाकिनी को, शाकिनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धक्का कूँ, पलीया कूँ, चौड़ कूँ, चौगट कूँ, काचा कूँ, कलवा कूँ, भूत कूँ, पलीत कूँ, जिन कूँ, राक्षस कूँ, बरियों से बरी कर दे। नजराँ जड़ दे ताला, इत्ता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे, माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे। चल डाकिनी, शाकिनी, चौडूँ मैला बाकरा, देस्यूँ मद की धार, भरी सभा में द्यूँ आने में कहाँ लगाई बार ? खप्पर में खाय, मसान में लौटे, ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे। राजा मेटे राज से जाय, प्रजा मेटे दूध-पू

ज्योतिष और शाबर-मन्त्र

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ज्योतिष और शाबर साधना-काल में जन्म-लग्न-चक्र के अनुसार ग्रहों की अनुकूलता जानना आवश्यक है। साधना भी एक प्रकार का कर्म है, अतः ‘दशम भाव’ उसकी सफलता या असफलता का सूचक है। साधना की प्रकृत्ति तथा सफलता हेतु पँचम, नवम तथा दशम भाव का अवलोकन उचित रहेगा। १॰ नवम स्थान में शनि हो तो साधक शाबर मन्त्र में अरुचि रखता है या वह शाबर-साधना सतत नहीं करेगा। यदि वह ऐसा करेगा तो अन्त में उसको वैराग्य हो जाएगा। २॰ नवम स्थान में बुध होने से जातक को शाबर-मन्त्र की सिद्धि में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ३॰ पँचम स्थान पर यदि मंगल की दृष्टि हो, तो जातक कुल-देवता, देवी का उपासक होता है। ४॰ पँचम स्थान पर यदि गुरु की दृष्टि हो, तो साधक को शाबर-साधना में विशेष सफलता मिलती है। ५॰ पँचम स्थान पर सूर्य की दृष्टि हो, तो साधक सूर्य या विष्णु की उपासना में सफल होता है। ६॰ यदि राहु की दृष्टि होती है, तो वह “भैरव” उपासक होता है। इस प्रकार के साधक को यदि पथ-प्रदर्शन नहीं मिलता, तो वह निम्न स्तर के देवी-देवताओं की उपासना करने लगता है।

नवग्रह शांति के प्रभावकारी उपाए

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नवग्रह शांतिदायक टोटके-------    सूर्यः- १॰ सूर्यदेव के दोष के लिए खीर का भोजन बनाओ और रोजाना चींटी के बिलों पर रखकर आवो और केले को छील कर रखो । २॰ जब वापस आवो तभी गाय को खीर और केला खिलाओ । ३॰ जल और गाय का दूध मिलाकर सूर्यदेव को चढ़ावो। जब जल चढ़ाओ, तो इस तरह से कि सूर्य की किरणें उस गिरते हुए जल में से निकल कर आपके मस्तिष्क पर प्रवाहित हो । ४॰ जल से अर्घ्य देने के बाद जहाँ पर जल चढ़ाया है, वहाँ पर सवा मुट्ठी साबुत चावल चढ़ा देवें    चन्द्रमाः- १॰ पूर्णिमा के दिन गोला, बूरा तथा घी मिलाकर गाय को खिलायें । ५ पूर्णमासी तक गाय को खिलाना है । २॰ ५ पूर्णमासी तक केवल शुक्ल पक्ष में प्रत्येक १५ दिन गंगाजल तथा गाय का दूध चन्द्रमा उदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय ऊपर दी गई विधि का इस्तेमाल करें । ३॰ जब चाँदनी रात हो, तब जल के किनारे जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को हाथ जोड़कर दस मिनट तक खड़ा रहे और फिर पानी में मीठा प्रसाद चढ़ा देवें, घी का दीपक प्रज्जवलित करें । उक्त प्रयोग घर में भी कर सकते हैं, पीतल के बर्तन में पानी भरकर छत पर रखकर या जहाँ भी चन्द्रमा क

।। नारायणास्त्रम् ।।

।। नारायणास्त्रम् ।। हरिः ॐ नमो भगवते श्रीनारायणाय नमो नारायणाय विश्वमूर्तये नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा परोक्षं अजीर्णं पञ्चविषूचिकां हन हन ऐकाहिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं ज्वरं नाशय नाशय चतुरशितिवातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान् हन हन सर्वदोषान् भंजय भंजय तत्सर्वं नाशय नाशय आकर्षय आकर्षय शत्रून् शत्रून् मारय मारय उच्चाटयोच्चाटय विद्वेषय विदे्वेषय स्तंभय स्तंभय निवारय निवारय विघ्नैर्हन विघ्नैर्हन दह दह मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हत्वा परविद्यां छेदय छेदय भेदय भेदय चतुःशीतानि विस्फोटय विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि सर्पसिंहव्याघ्र द्विपदचतुष्पद पद बाह्यान्दिवि भुव्यन्तरिक्षे अन्येऽपि केचित् तान्द्वेषकान्सर्वान् हन हन विद्युन्मेघनदी पर्वताटवीसर्वस्थान रात्रिदिनपथचौरान् वशं कुरु कुरु हरिः ॐ नमो भगवते ह्रीं हुं फट् स्वाहा ठः ठं ठं ठः नमः ।।

Astrology &Divya Mantra: कार्य सिद्धि यन्त्र

Astrology &Divya Mantra: कार्य सिद्धि यन्त्र : "कार्य सिद्धि यन्त्र नवरात्र, होली, दीपावली, ग्रहणकाल या पुष्य नक्षत्र वाले दिन शुभ एवं अनुकूल मुहूर्त में ताम्रपत्र पर बने हुए यंत्र को पं..."

कार्य सिद्धि यन्त्र

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कार्य सिद्धि यन्त्र नवरात्र, होली, दीपावली, ग्रहणकाल या पुष्य नक्षत्र वाले दिन शुभ एवं अनुकूल मुहूर्त में ताम्रपत्र पर बने हुए यंत्र को पंचामृत से स्नान करवाकर शुद्ध कर लें। तत्पश्चात् यंत्र को शिवलिंग की जलहरी के नीचे इस तरह रखें कि शिवलिंग पर जल एवं दूध चढ़ाने के दौरान चढा हुआ जल व दूध इस यंत्र के ऊपर गिरता रहे। शिवलिंग पर जल व दूध चढ़ाते रहें तथा “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र को गहरी सांस से बोलते रहें। ऐसा प्रतिदिन १० मिनट तक करें। किसी महत्त्वपूर्ण कार्य पर प्रस्थान करते समय उक्त यंत्र को अपनी जेब में रखकर ले जावें। यह अत्यन्त प्रभावकारी क्रिया है अतः इसकी निरन्तरता बनाये रखने से शुभ परिणाम आते हैं।

वस्त्र धारण तथा भविष्य

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वस्त्र धारण तथा भविष्य समान्यतः वस्त्र सुन्दर एवं आकर्षक दिखने एवं अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली दिखाने हेतु धारण किए जाते हैं। रंग, आकृति एवं स्वरुप की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति की पसन्द भिन्न-भिन्न हो सकती है। ज्योतिष शास्त्र मेम क्रमशः देव, मनुष्य एवं राक्षस गण होते हैं। इसके अतिरिक्त वास्तु शास्त्र में आठ दिशाओं तथा ब्रह्मस्थल का विशेष महत्त्व होता है। इसी प्रकार वस्त्र में उक्त आठ दिशाओं एवं ब्रह्मस्थल के आधार पर तीनों गणों का निवास होता है। इस तीनों गणों के निवास स्थान को निर्धारित करने हेतु सर्वप्रथम वस्त्र को नौ समान भागों में विभाजित किया जाना चाहिए। वस्त्र की चारों कोण-दिशाओं (ईशान, आग्नेय, नैऋत्य तथा वायव्य) में देवता का निवास मानें तथा पूर्व-पश्चिम एवं ब्रह्मस्थल में राक्षस का तथा उत्तर एवं दक्षिण दिशा में मनुष्य का निवास मानें। उपर्युक्त आधार एवं अन्य सामान्य आधार पर वस्त्र धारण से सम्बन्धित शुभाशुभ फलों का वर्णन किया जाता है। ॰ यदि नवीन वस्त्र धारण किया जाए तथा उसके कुछ समय उपरान्त ही यदि स्याही, कीचड़, गोबर आदि से वस्त्र गन्दा हो जाए, तो ऐसे व्यक्ति को अनि

श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथजी नव-नाथ, चौरासी सिद्ध,

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“ॐ गुरुजी, सत नमः आदेश। गुरुजी को आदेश। ॐकारे शिव-रुपी, मध्याह्ने हंस-रुपी, सन्ध्यायां साधु-रुपी। हंस, परमहंस दो अक्षर। गुरु तो गोरक्ष, काया तो गायत्री। ॐ ब्रह्म, सोऽहं शक्ति, शून्य माता, अवगत पिता, विहंगम जात, अभय पन्थ, सूक्ष्म-वेद, असंख्य शाखा, अनन्त प्रवर, निरञ्जन गोत्र, त्रिकुटी क्षेत्र, जुगति जोग, जल-स्वरुप रुद्र-वर्ण। सर्व-देव ध्यायते। आए श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथ। ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षः प्रचोदयात्। ॐ इतना गोरख-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया। गंगा गोदावरी त्र्यम्बक-क्षेत्र कोलाञ्चल अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ। नव-नाथ, चौरासी सिद्ध, अनन्त-कोटि-सिद्ध-मध्ये श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथजी कथ पढ़, जप के सुनाया। सिद्धो गुरुवरो, आदेश-आदेश।।”

हनुमान वशीकरण मन्त्र

हनुमान वशीकरण मन्त्र “ॐ राई वर राई पचरसी। बारह सरसू तेरह राई। नब्बे दिन मंगलवार को ऐसी भाऊ, पराई स्त्री (साध्या का नाम) को भूल जाए घर-बार। घर छोड़, घर की डौरी छोड़। छोड़ माँ-बाप और छोड़ घर का साथ, हो जा मेरे साथ। दुहाई तुझे हलाहल हनुमान की। मेरा काम जल्दी कर, नी करे तो माँ अञ्जनी के सेज पर पाँव धरे। तेरी माता का चीर फाणीने लँगोट करे। फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।”              विधि- उक्त मन्त्र को पहले ‘नवरात्र’ या ‘ग्रहण’ में सिद्ध करे। ‘नवरात्र’ में मंगल और शनिवार को हनुमान जी को चोला चढ़ाए और प्रतिदिन हनुमान जी की मूर्ति के समक्ष १०८ बार जप करे। जप के समय अपने पास ‘राई’ और ‘सरसों’ रखे। मन्त्र पढ़कर इन्हें अभिमन्त्रित करे। बाद में आवश्यकतानुसार ‘प्रयोग’ करे। प्रयोग के समय चतुराई से तेरह राई ‘साध्या’ की डेहरी पर डाले और बारह सरसों उसके घर पर फेंके।